Friday, 18 June 2021

Her naughty frown... -Spoorthy Shastry

My mother
is a naughty weed,
She completes the work
for our friendly need;

She has a lime
of troubling time,
But then too she's always,
the best of mine;

Often she becomes
the angry man,
But she likes
the spicy pan;

She is a very
charming mom,
But she never forgets
her naughty frown.

-Spoorthy, Grade 6, Bengaluru

Submitted by: Spoorthy Shastry
Submitted on: Thu Jun 17 2021 17:44:51 GMT+0530 (IST)
Category: Poem
Acknowledgements: This is Mine. / Original | Photo Courtesy: Internet
.Language: English
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[category Poem, English, This is Mine. / Original]

ॐ गणेशाय नमः - Purity and Divinity -Vidysagar


 

ॐ गणेशाय नमः - Purity and Divinity


Submitted by: Vidysagar
Submitted on: Sun May 30 2021 18:54:49 GMT+0530 (IST)
Category: Drawing
Acknowledgements: I have been asked to submit in the Author's own name or pen name.
.Language: संस्कृत/Sanskrit
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[category Drawing, संस्कृत/Sanskrit, I have been asked to submit in the Author's own name or pen name.]

Sowmya - I miss you... -Isha

I miss you
Each and every day
I miss you
when I wake up
and in my walk.
I miss you
to tell Chickadee stories
you liked, when I told
Each and every day.

You smiled and hugged
Waited for me near door
You jumped and wagged
When I was home.
Your dream was my school,
when I was ready to go,
Each and every day.

I miss you
when it snows,
I miss you
when I see others with pets.
You were
My love,
My friend,
my family.
You are
in my heart
Each and every day.

-Isha
Age: 7yrs. Grade 2.

लालटेन -हरेकृष्ण आचार्य

मुझे ऐसे तीन लोग ज्ञात हैं जिन्होंने भूत का एहसास किया है। और उनमें से एक ने देखा है पर उस समय पहचान नहीं पाए। एक ऐसी घटना का कथन मेरे पिताजी किया करते थे।

बात १९५५ की होगी। उस समय सब पैदल ही जाते थे और गावों के बीच जंगल ही हुआ करते थे। ये है मेरे पिताजी की ज़बानी | पिताजी अपने दादा के बहुत प्रिय थे। दादाजी याने मेरे पड़ दादा।



दादाजी पंडित थे और उनको लोग घर पूजा के लिए बुलाया करते थे। ज़्यादातर ये पूजा सुबह- सुबह ही प्रारंभ करनी पड़ती थी। सुबह जल्दी पहुंचने के लिए दादाजी , जिनको पैदल जाना पड़ता था, सुबह ३-४ बजे ही निकल पड़ते थे। दादाजी को तैयार होता देख मैं भी उठ जाता था और दादाजी के साथ जाने की जिद करता था। कई बार दादाजी मुझे नकार देते थे , जंगली जानवरों का नाम लेकर, पर कई बार मेरा रोना देख वो पिघल जाते थे। ले चलते थे अपने कंधों पर। पकड़ा देते थे मुझे लालटेन आगे के रास्ते को उजला करने के लिए। ये उस दिन की बात है, जिस दिन दादाजी करीब साढ़े - तीन बजे घर से निकले मुझे अपने कंधों पे लिए, मैं लालटेन पकड़े, इस सुध में खोया था कि अब फिर मिलेगा अवसर लोमडियों की टिमटिमाती आंखें देखने का। मुझे इसी बात का बहुत चाव था - अंधेरे में लोमडियों की दूर से टिमटिमाती आंखें! इस बात का दादाजी को ज्ञान नहीं था - लेकिन इसी बात के कारण मैं जिद करता था उनके साथ जाने का।

उस दिन हम निकले और अपने छोटे से गांव को जल्द ही पीछे छोड़े जंगल में पांव के रास्ते से बढ़ते गए। दादाजी काफी तेज चलते थे। सफर भी अंदाजन डेढ़ घंटे पैदल का होगा। कुछ आगे बढ़े तो जंगल घना होता गया। मेरी आंखें लोमडियों की टिमटिमाती आंखें खोजने लगी। कुछ दिखीं , कुछ नहीं। एक तरफ कुछ आगे दो आंखे कुछ सर के ऊपर की ऊंचाई पर दिखीं। ये इतनी पास थीं की मैं दादाजी से पूछ बैठा, की ये दो बत्तियों जैसी चीज क्या है तो उनके जवाब से में सन्न रह गया। उन्होंने सहज ही बोला की वो काले - बाघ (ब्लैक पैंथर) की आंखे हैं। मैंने अपनी आंखें घुमाई और फिर किसी लोमड़ी की आंखें खोजने की कोशिश नहीं की। पर मैं दंग भी था कि दादाजी डरे नहीं और वैसे ही तेज बस चलते रहे। उस अंधेरे का डर अब मुझे समझ आया और मैं टिकटिकी लगाए बस आगे का रास्ता देखता गया। दादाजी चलते रहे। लालटेन जलती रही।

भोर होने का समय अभी भी दूर था, शायद सवा चार बजे होंगे। समय का ज़्यादा पता नहीं चला। मैं अब भी थोड़ा सन्न था। काले बाघ की आंखें अब भी कुछ आंखों के सामने ही थीं। तभी आगे से एक आहट आयी। देखा एक आदमी बस आगे ही खड़ा है, दादाजी के सामने।

लालटेन के उजियारे में ज़्यादा दूर दिखता नहीं था, बस कुछ हाथ, पांव के कुछ आगे, बस। उस आदमी ने दादाजी से उस गांव का रास्ता पूछा जिस गांव हम जा रहे थे। दादाजी ने उसे हमारे पद-चिन्ह देख आने को कहा क्योंकि हम भी वहीं जा रहे थे। वो "अच्छा ठीक" बोलकर हम जिस रास्ते से आ रहे थे , उसी रास्ते, हम जिस गांव से आ रहे थे , उसी ओर चला गया। मैं तो तब भी काले बाघ के बारे में सोच रहा था, पर कुछ देर बाद, मैंने पीछे मुड़ देखा तो अजनबी दिखाई नहीं दिया। मैंने थोड़ी लालटेन उठाकर और भी पीछे तक आंख घुमाई तब भी अजनबी दिखाई नहीं दिया।

अरे! ये कहां गया, मेरे मन में विचार आया, इसे तो हमारे पीछे - पीछे आना चाहिए था, आखिर उसी गांव जा रहा था जहां हम जा रहे थे, तो फिर ये किधर गया? मैंने दादाजी को आगाह किया कि वो अजनबी हमारे पीछे नहीं चल रहा है, शायद पीछे रह गया होगा, हमे शायद उसके लिए रुकना चाहिए, तो दादाजी ने झट कहा - उन्हें पता है वो हमारे पीछे नहीं आ रहा।

दादाजी के जवाब को मैं पत्थर की लकीर मानकर चुप हो गया। कुछ समझ नहीं आया, पर चुप रह गया, कुछ देर। लेकिन मन की चुप्पी में अशांत रहा, दादाजी को कैसे पता की वो पीछे नहीं आ रहा था? आखिर उन्हों ने ही उसको अपने पद चिन्ह देख, आने को कहा था?

यही प्रश्न कुछ देर मुझे असमंजस में डालते रहे। आखिर यही प्रश्न मैंने दादाजी से पूछे, उनका चहेता जो था! दादाजी ने मेरे प्रश्न सुने और कुछ कहा नहीं। हूं! बोलकर चलते रहे। शायद पांच बज रहे थे, सूरज अभी उगा नहीं था, पर पौ फटने में ज़्यादा देर ना थी। कुछ चिडियों का शोर शुरू हो चुका था, मुझे भी थोड़ी नींद सी आ रही थी। फिर भी मैंने फिर मन बनाकर दादाजी से फिर वही प्रश्न पूछा। इस बार उन्होंने एक लम्बी सांस ली और धीरे से पूछे: "क्या तुमने उसके पांव नहीं देखे?" मैंने कहा: "नहीं"। दादाजी बोले: "वह एक नर - पिशाच था। नर - पिशाचों के पांव उल्टे होते हैं। इसीलिए वो मेरे पद - चिन्ह देख उल्टे रास्ते चला गया। "

बस उस दिन से मैंने कभी दादाजी के साथ जाने की जिद नहीं की।

-हरेकृष्ण आचार्य
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उपसंहार: श्री देवदास आचार्य के दादाजी श्री नारायण आचार्य | इस वारदात का वर्णन कन्नड़ भाषा में श्री देवदास आचार्य ने अपने जीवन काल में कई बार की थी | इसको उनके बेटे श्री हरेकृष्ण आचार्य ने लिखित रूप में हिंदी भाषा में रूपांतरित किया है | अब ये मन गढंत बात थी या सच इस बात का निर्णय पाठक पर है | करोड़ कथाएं (ए बिलियन स्टोरीज़ ) सिर्फ एक प्रस्तुतकर्ता है |



Submitted by: हरेकृष्ण आचार्य
Submitted on: Thu Sep 17 2020 17:44:51 GMT+0530 (IST)
Category: Story
Acknowledgements: This is Mine. / Original | Photo Courtesy: Internet
Language: हिन्दी/Hindi


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[category Story, हिन्दी/Hindi, This is Mine. / Original]

Wednesday, 9 June 2021

AATMA - Movements of the Mind Body Soul -Vidyasagar


AATMA - Movements of the Mind Body Soul


Submitted by: Vidyasagar
Submitted on: Sat May 29 2021 19:25:01 GMT+0530 (IST)
Category: Drawing
Acknowledgements: I have been asked to submit in the Author's own name or pen name.
$PHOTO_COURTESY$ Language: English
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[category Drawing, English, I have been asked to submit in the Author's own name or pen name.]

Sunday, 6 June 2021

चत्वारि ते तात गृहे -विदुर नीति

चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु
श्रियाभिजुष्टस्य गृहस्थधर्मे |
वृद्धो ज्ञातिरवसन्नः कुलीनः
सखा दरिद्रो भगिनी चानपत्या ||

- विदुर नीति

भावार्थ - हे तात ! धन धान्य से भरपूर एक समृद्ध गृहस्थ का
यह कर्तव्य है कि वह इन चार प्रकार के व्यक्तियों को अवश्य शरण
दे - (१) एक वृद्ध बान्धव (रिश्तेदार) (२) एक कुलीन दुःखी व्यक्ति
(३) एक दरिद्र मित्र तथा (४) सन्तानहीन बहन |

Chatvaari te taat gruhe vasantu
Shriyaabhijushasya gruhasthadharme.
Vruddho gyaatiravasannah kuleenah
Sakhaa daridro bhagini chaanapatyaa.

Chatvaari = four. Te = these. Taata = a term of affection
for addressing a senior or junior person, father. Gruhe=
in the household. Vasantu = should reside. Shriya +
abhijushtasya. Shriya = prosperity. Abhijushtasya =
possessed of. Grusthadharme = householder's duty.
Vruddho = aged person. Gyaatih + avasannah. Gyaatih=
a relative. avasannah = distresssed. Kuleena= noble
Sakhaa = a friend. Daridro = poor. Bhaginee = sister.
Cha+ anapatyaa. Anapatyaa= childless.

i.e. It is the duty of a prosperous housholder that he should
support these four types of persons , namely (i) an aged close
relative (ii) a noble distressed person (iii) a poor friend and
(iv) his childless sister.

Submitted by: विदुर नीति
Submitted on: Wed May 5 2021 23:57:01 GMT+0530 (IST)
Category: Quote
Acknowledgements: Excerpt from ancient text.
Language: संस्कृत/Sanskrit
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[category Quote, संस्कृत/Sanskrit, Excerpt from ancient text.]

सुखार्थी वा त्यजेत विद्याम... -देवसुत

सुखार्थी वा त्यजेत विद्याम विद्यार्थी वा त्यजेत  सुखं ‌।
सु:खार्थिनो कुतो विद्या कुतो विद्यार्थिनः सुखं ।।

Those who are in pursuit of comfort (sukha) should forget about learning (vidya) and those who are in pursuit of learning should forget about comfort. Those who are after pleasures of life never become learned and those who want to be learned should never expect to lead an easy life.

Transliteration:
sukhArtee vA tyajaet vidyAm, vidyArthee vA tyajaet sukham.
sukArthino kuto vidyA, kuto vidyArthinah sukham.
Submitted by: देवसुत
Submitted on:
Category: Quote
Acknowledgements: Excerpt from ancient text.
Language: संस्कृत/Sanskrit
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[category Quote, संस्कृत/Sanskrit, Excerpt from ancient text.]

Strong leaders... -Harekrishna

Strong leaders are reflections of the weak minds they lead.
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2-Jul-2004
Submitted by: Harekrishna
Submitted on: Sat May 20 2021 22:27:23 GMT+0530 (IST)
Category: Quote
Acknowledgements: This is Mine. / Original
Language: English
Search Tags: My own experiments with Truth. Management Quotes. Political Quotes.
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[category Quote, English, This is Mine. / Original]

Saturday, 5 June 2021

Feelings of the night -Divij



The night before yesterday my eyes opened up. I saw the moonlight come through the window. The blueberry tree outside was casting strange shadows in my bedroom. The eerie silence was only broken by the quiet rustling leaves of the blueberry tree.

Suddenly, I felt that someone was walking in the living room. However, I dismissed the thought as mere imagination, though the feeling had made me nervous. I closed my eyes shut hoping for sleep to take over.

My eyes opened up when I felt that this "someone" was walking up the stairs towards my bedroom. But, I heard no footsteps or creaking of the wooden floor boards. I closed my eyes again trying my best to sleep.

Then,

I heard a jingling sound of metal necklaces. My eyes opened again with a start.

"Was it my imagination?"

I remembered that my sisters' necklaces and earrings were hung near the stairs.

"It is not true.'' I said to myself looking at the moonlight in my room. I did not want to move my eyesight towards my bedroom door. My ears were so alert that I could hear the slow breeze even outside my closed bedroom window.

The necklace jingled again.

I froze.
---
Penned on: 30-Oct-2020
Submitted by: Divij
Submitted on: Wed May 26 2021 23:57:01 GMT+0530 (IST)
Category: Story
Acknowledgements: This is Mine. / Original
Photo Courtesy: Internet
Language: English
Search Tags: Horror
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[category Story, English, This is Mine. / Original]

Thursday, 3 June 2021

அர்ப்பணிப்பு -Shankar

நீங்கள் என்ன வேலை செய்கிறீர்கள் என்பதை விட ,
அதை நீங்கள் எவ்வாறு செய்கிறீர்கள் என்பதே முக்கியம் .

-Shankar
---
Editor's Note: This is a translation. The original was written in English and is found here > .
Submitted by: Shankar
Submitted on: Wed May 6 2021 23:57:01 GMT+0530 (IST)
Category: Quote
Acknowledgements: This is Mine. / Original
Language: தமிழ்/Tamil
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[category Quote, தமிழ்/Tamil, This is Mine. / Original]

My Big Backyard Tree -Ira

You are so sweet
Taller than me
Stronger than me
Bigger than all
and beautiful.

Bloom in spring
No leaves in fall
Summer is
Full of fruits
and flowers.

Chirping birds
Sleeping raccoons
Jumping squirrels
All on you.
My big backyard tree
I love you.

-Ira
Age: 7yrs. Grade 2.
Submitted by: Ira
Submitted on: Sat May 29 2021 22:03:27 GMT+0530 (IST)
Category: Poem
Acknowledgements: This is Mine. / Original
Language: English
Search Tags: Love of Nature. Children's Poems
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[category Poem, English, This is Mine. / Original]