Saturday, 31 December 2022

मैं मूर्ख... -देवसुत

मैं अंधा
मैं ही ज्ञानी

मैं मूर्ख
मैं ही अन्तर्यामी

बंद आँख कर
मैं बन योगी

आँख खोल
मैं बन भोगी

योग का भोग
नहीं मैं करता

भोग का योग
मैं हूँ करता

सुनते बैठा तू
चल उठ,
कर काम
है काफी |

कर्म योग
कलयुग का है साथी |

-देवसुत
Submitted by: देवसुत
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Category: Poem
Acknowledgements: Original
Language: हिन्दी/Hindi
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[category Poem, हिन्दी/Hindi, Original]

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