अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
उठी ऐसी घटा नभ में
छिपे सब चाँद और तारे,
उठा तूफ़ान वह नभ में
गए बुझ दीप भी सारे,
मगर इस रात में भी लौ लगाये कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
गगन में गर्व से उठ उठ
गगन में गर्व से घिर घिर,
गरज कहती घटाए हैं
नहीं होगा उजाला फिर,
मगर चिर ज्योति में निष्ठा जमाये कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
तिमिर के राज्य का ऐसा
कठिन आतंक छाया है,
उठा जो शीश सकते थे
उन्होंने सिर झुकाया है,
मगर विद्रोह की ज्वाला जलाये कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
प्रलय का सब समां बांधे
प्रलय की रात है छाई,
विनाशक शक्तियों की इस
तिमिर के बीच बन आयी,
मगर निर्माण में आशा दृढआये कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
प्रभंजक मेघ दामिनी ने
न क्या तोडा न क्या फोड़ा,
धरा के और नभ के बीच
कुछ साबुत नहीं छोड़ा,
मगर विश्वास को अपने बचाए कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
प्रलय की रात को सोचे
प्रणय की बात क्या कोई,
मगर प्रेम बंधन में
समझ किसने नहीं खोई,
किसी के पंथ में पलकें बिछाये कौन बैठा है?
अँधेरी रात में दीपक जलाये कौन बैठा है?
-हरिवंश राय बच्चन
Category: Poem
Acknowledgements: Non-Original work with acknowledgements
Language: हिन्दी/Hindi
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