दूध में दरार पड़ गई
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया |
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई |
दूध में दरार पड़ गई |
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है |
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई |
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता |
बात बनाएं, बिगड़ गई |
दूध में दरार पड़ गई |
-श्री अटल बिहारी वाजपेयी
Category: Poem
Acknowledgements: Non-Original work with acknowledgements
Language: हिन्दी/Hindi
- Send your submissions to editor@abillionstories.com
- Read your published work at https://readit.abillionstories.com
[category Poem, हिन्दी/Hindi, Non-Original work with acknowledgements]
No comments:
Post a Comment